सफलता की कहानी
सुनीता, संस्कारधानी की ही एक बालिका, जो एक समय परिवार से अलग होकर, अकेले जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर हो गई थी। पारिवारिक कारणों से उसे घर छोड़ना पड़ा और वह गुजारे के लिए इधर-उधर भटकने लगी।
ग्वारीघाट में पुलिस जब उसे इस स्तिथि में देखा तो उससे पूछ ताक्ष की और उसके परिवार को सौपने के जब उसके घर गए तो उसके परिवार ने उसे अपनाने से इनकार कर दिया.
जब परिवार जन किसी भी प्रकार से मानने के लिए तैयार नहीं हुए तो पुलिस ने सुनिता को लाडली बसेरा में भेज दिया, ताकि उसे सुरक्षित माहौल और सही दिशा मिल सके। उसे शिक्षा के लिए शहर के शासकीय माध्यमिक शाला में प्रवेश दिलाया गया, जहाँ से उसने कक्षा आठवी की परीक्षा पास की.
लाडली बसेरा की पालन पोषण एवम शाला के परिवेश ने उस पर अच्छा प्रभाव डाला. संस्था द्वारा उसे व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिलवाया गया, जिससे भावी जीवन में आर्थिक रूप से स्वावलम्बी हो सके.
वर्ष 2023-24 में, जब सुनीता 18 वर्ष की हो गई, तो उसके परिवार से फिर सम्पर्क किया गया और उन्हें सुनीता को अपनाने के लिए समझाने के साथ में प्रेरित भी किया गया.
प्रारंभ में संकोच करने के बाद, अंततः उसके परिवार ने उसे स्वीकार कर लिया।
कुछ समय बाद, परिवार ने उसका विवाह एक अच्छे परिवार में कर दिया, जहां उसे सम्मान और स्नेह मिला। आज सुनीता एक स्वावलंबी और सुखी जीवन जी रही है।
जब भी सुनीता से बात होती है तो वह कहती है यदि वह बालिका गृह में नहीं आती तो जीवन का यह मुकाम हासिल नहीं हो सकता था.